
जौनसार बावर का लोकप्रिय और परम्परागत त्योहार मौण मेला
मौण मेला
इस उत्सव के बारे में यह भी कहा जाता है कि मौण, टिमरू नाम के पेड़ के तने की छाल को सुखाकर तैयार किए गए महीन चूर्ण को कहते हैं। इसे पानी में डालकर मछलियों को बेहोश करने में प्रयोग किया जाता है। टिमरू का उपयोग दांतों की सफाई के अलावा कई अन्य औषधियों में किया जाता है। मौण के लिए दो महीने पहले से ही ग्रामीण टिमरू के तनों को काटकर इकट्ठा करना शुरू कर देते हैं। मेले से कुछ दिन पूर्व टिमरू के तनों को हल्का भूनकर इसकी छाल को ओखली या घराटों में बारीक पाउडर के रूप में तैयार किया जाता है।
27 साल बाद इस बार बणगांव ख़त द्वारा खतनू नदी में मौण मेला
उत्तराखंड वैसे तो देव भूमि के रूप में जाना जाता है,यहाँ पर हर 14 कोस में मामूली भाषायी अंतर आ जाता है,विभिन्न संस्कृतियो वाले इस प्रदेश में भिन्न-भिन्न प्रकार के रीती- रिवाज,त्यौहार एव लोक संस्कृति हैं, उन्ही में से एक है जौनसार बावर पौण मेला नियत समय पर उद्घोषणा के साथ नदी में लगा जमावड़ा,मछलियों को पकड़ने के लिए टूट पड़ता है , जिसने जितना अधिक मछली पकड़ी,उतना ही वो सौभाग्यशाली समझा जाता है बता दें कि जौनसार-बावर में दो तरह के मौण मेले का आयोजन किया जाता है, जातरु मौण और मच्छ मौण। खतनू नदी में 4 जून 2017 को मच्छ मौण में पौराणिक परंपरा के अनुसार नदी में मछलियों का शिकार होता हैखतनू नदी में टिमरु पाउडर ( ब्लीचिंग) डालने के साथ ही मौण मेला शुरू हो जाता है ,27 साल बाद हुए मच्छ मौण में क्षेत्र की आठ खतों द्वार, बिशलाड, मोहना, बोंदूर, अठगांव, कोरु, बहलाड़ के ग्रामीणों ने प्रतिभाग किया, बणगांव खत ने पूरे क्षेत्र के लोगों को मौण मेले में आने का निमंत्रण भेजा था, लोक संस्कृति के प्रतीक मौण मेले में शामिल लोगों में मछलियां पकड़ने का विशेष उत्साह होता है।
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